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Sach Kahun Toh/सच कहूँ तो

Meri Aatmkathaa/मेरी आत्मकथा

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दिल्ली के करोल बाग में बिताए बचपन के दिनों से लेकर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय तक, और वहाँ से 80 के दशक में बॉम्बे जाने और काम पाने के संघर्ष भरे दिनों तक अभिनेत्री और 'पैदायशी बिगड़ैल' नीना गुप्ता ने अपने सफ़र को सिलसिलेवार सामने ला रखा है – अपनी सरस, गुदगुदाती और (जरूरत से ज्यादा) ईमानदार आत्मकथा सच कहूँ तो में। फिर चाहे उनकी ज़िंदगी की बड़ी उपलब्धियाँ हों, बिन शादी प्रेगनेंसी हो, या फिर सिंगल पेरेंटहुड; या फिर बॉलीवुड में उनकी ज़बरदस्त दूसरी पारी से जुड़ा ब्यौरा ही क्यों न हो, उन्होंने हर पहलू को छुआ है। किताब जहाँ कास्टिंग काउच और इंडस्ट्री की राजनीति जैसे मुद्दों पर मुखर हुई है, वहीं झलक दिखाती है कि एक युवा कलाकार गॉडफादर या गाइड के बिना कैसे अपने पैर जमाता है। इसके ज़रिए यह भी राज़ खुलता है कि गुप्ता ने एक लोकप्रिय टीवी चैनल के साथ काम करना क्यों छोड़ा, और बधाई हो में अपनी सफल भूमिका हासिल करने तक किन-किन मुश्किलों और क्लेशों से होकर गुज़रीं। सच कहूँ तो के ज़रिए अपने ख़ालिसपन को बिंदास सामने लाते हुए उन्होंने अपनी ज़िंदगी में आए तमाम विकल्पों, अब-तब रूढ़ियों से जूझने, और ख़ुद के स्वछंद होने से जुड़ी लोगों की सोच को सिरे से नकारते हुए पेश किया है, अपना असल अवतार वो भी खरे-खरे शब्दों में, बिना लागलपेट। पढ़कर जानें!

Formats

  • Kindle Book
  • OverDrive Read
  • EPUB ebook

Languages

  • Hindi

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